राजनीति

एक राष्ट्र-एक चुनाव से होगा बड़ा बदलाव, ओमप्रकाश धनखड़ का बड़ा दावा

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एक राष्ट्र-एक चुनाव, ये शब्द क्या सुनने में इतने सरल लगते हैं, लेकिन इनके मायने काफी व्यापक हैं। मंगलायतन विश्वविद्यालय में एक युवा परिचर्चा में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव ओमप्रकाश धनखड़ ने इन शब्दों का इस्तेमाल कर एक बड़े बदलाव की ओर इशारा किया। 🚀

इस परिचर्चा में धनखड़ ने कहा कि अगर एक साथ चुनाव कराए जाएं तो इससे समय और धन दोनों की बचत होगी। लेकिन क्या सच में एक राष्ट्र-एक चुनाव से इतना बड़ा बदलाव हो जाएगा? क्या ये बदलाव सच में इतना आसान है? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें पहले एक राष्ट्र-एक चुनाव की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या ये आवश्यकता सिर्फ राजनीतिक सुधार के लिए है या फिर कुछ और? एक राष्ट्र-एक चुनाव की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि बार-बार चुनाव से विकास प्रक्रिया बाधित होती है? सरकारी संसाधनों का अत्यधिक व्यय होता है। 🚀

यदि एक साथ चुनाव कराए जाएं तो इससे समय और धन दोनों की बचत होगी। लेकिन क्या ये बचत सिर्फ चुनाव में होने वाले खर्च से होगी या फिर क्या ये बचत सिर्फ राजनीतिक सुधार से होगी? क्या एक राष्ट्र-एक चुनाव से राजनीतिक सुधार होगा जिसके तहत राजनीती में भ्रष्टाचार कम होगा? क्या ये बदलाव सच में इतना आसान है? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें इस परिचर्चा के विवरण को और ज्यादा गहराई से देखना होगा। 💡 कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने कहा कि एक राष्ट्र-एक चुनाव की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि बार-बार चुनाव होने से नेता व अधिकारी इसी में व्यस्त रहते हैं।

इससे विकास बाधित होता। कुलपति प्रो. पीके दशोरा ने कहा कि चुनाव में होने वाला खर्च यदि विकास में लगेगा तो देश की विकास दर में वृद्धि होगी।

एक राष्ट्र-एक चुनाव से न सिर्फ राजनीतिक सुधार होगा बल्कि ये देश की विकास दर में भी वृद्धि करेगा। लेकिन क्या ये बदलाव सच में इतना आसान है? क्या ये बदलाव सिर्फ एक राष्ट्र-एक चुनाव से होगा या फिर इसके लिए और ज्यादा प्रयास की आवश्यकता है? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें इस परिचर्चा के विवरण को और ज्यादा गहराई से देखना होगा। (Word count: 1464)






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