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वकीलों की सरकार से टक्कर, निबंधन कार्यालयों के निजीकरण से कातिब, वकील और कर्मचारियों का रोजगार खतरे में!
निबंधन कार्यालयों में फ्रंट ऑफिस खोलने के विरोध में जिले भर की तहसीलों में वकील गुस्से में हैं। मंगलवार को भी गभाना, इगलास, खैर और अतरौली तहसीलों में वकीलों ने प्रदेश सरकार के खिलाफ दिन भर नारेबाजी की। गभाना में तहसील के अंदर भवन का मुख्य द्वार में ताला लगाकर दिन भर वकील धरने पर बैठे रहे।
खैर और इगलास में भी वकीलों की कलमबंद हड़ताल जारी है। यह घटना निबंधन कार्यालयों के निजीकरण के विरोध में है, जिसके तहत कातिब, वकील और कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों का रोजगार समाप्त हो जाएगा।
सरकार के इस निर्णय से वकील न्यायिक और निबंधन कार्य से पूरी तरह विरत रहेंगे। गभाना संवाददाता के अनुसार वकीलों ने कहा कि निबंधन कार्यालयों का निजीकरण होने से कातिब, वकील और कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों का रोजगार समाप्त हो जाएगा। 🚀 धरना देने वालों में हिम्मत सिंह, अरुण कुमार सिंह, विनेश कुमार सिंह, सुधींद्र प्रताप सिंह, प्रदीप कुमार, सतीश शर्मा, हरेंद्र सिंह, महेश कुमार, मनोज सिंह, वेदवीर सिंह, जितेंद्र सिंह, राजपाल सिंह मौजूद रहे। 💡
इeglास संवाददाता के अनुसार बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक उपाध्याय की अध्यक्षता में बैठक हुई। 🌟 वकील नर्मदेश्वर ने प्रस्ताव रखा कि सरकार के इस निर्णय के विरोध में सभी वकील न्यायिक और निबंधन कार्य से पूरी तरह विरत रहेंगे।
इसके बाद ज्ञापन तैयार कर निबंधन कार्यालय, एसडीएम और तहसीलदार न्यायालय में दिया गया। चेतावनी दी कि सरकार ने निर्णय वापस नहीं लिया, तो आंदोलन और भी व्यापक किया जाएगा। खैर संवाददाता के अनुसार बार एसोसिएशन के महामंत्री संजय कुमार शर्मा ने कहा कि डीआईजी का यह बयान गले नहीं उतर रहा है कि फ्रंट ऑफिस खुलने से वकीलों के हितों अथवा कार्यों पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। डीआईजी के बयान पर फैसला लेने के लिए बुधवार को सभी वकील, कातिब, स्टांप विक्रेता और टाइपिस्टों की बैठक होगी।
इसमें हड़ताल पर आगे का फैसला लिया जाएगा। आखिर क्यों वकील सरकार से टक्कर ले रहे हैं? क्या वास्तव में निबंधन कार्यालयों के निजीकरण से वकीलों के हितों को नुक्सान पहुचा होगा? इन सवालों के जवाब के लिए वकीलों ने सरकार के खिलाफ दिन भर नारेबाजी की। गभाना में तहसील के अंदर भवन का मुख्य द्वार में ताला लगाकर दिन भर वकील धरने पर बैठे रहे। यह घटना न केवल वकीलों के हितों से जुड़ी है बल्कि पूरे समाज के लिए भी मायने रखती है।
यदि सरकार इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं करती है, तो आंदोलन और व्यापक होगा। वकीलों के साथ-साथ आम जनता के हितों का भी ध्यान रखना होगा। यह घटना हमें एक बार फिर सोचने पर विवश कर देता है कि क्या सरकार सच में जनता के हितों की रक्षा कर रही है?