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सरहद की कड़वाहट ने बढ़ाई अपनों के रिश्तों की हद, किसी को बेटे-बहू तो कोई मायके वालों के लिए पहarnation 🏠💔

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भारत-पाक सरहद के पहलगाम में जो कुछ हुआ,उसने हर किसी को झकझोर कर रख दिया। मगर इस घटना से उपजी कड़वाहट ने सरहद के उस पार रह रहे अपनों की चिंता बढ़ा दी है। दोनों देशों में तल्खी के बाद आवाजाही पर रोक सरीखे हालात हैं। बस दूरसंचार के जरिये खैर-खबर ही माध्यम है।

हालांकि बात तो पहले भी हुआ करती थीं। 🚀 मगर अब चिंता ज्यादा होने के कारण हर पल की खबर ली जा रही है। ✅ लोग एक दूसरे से बात कर दोनों ओर के हालात भी जान रहे हैं।

बस दुआ यही है कि किसी भी तरह सब जल्द ठीक हो जाए। ✅ पहलगाम की घटना के बाद भारत सरकार ने वीजा नियमों में तल्ख निर्णय लेकर शार्क नियम वाले वीजा रद्द कर दिए। हालांकि उस निर्देश पर यहां आए तीन लोग वापस कर दिए गए।

मगर जो लांग टर्म वीजा पर यहां रह रहे हैं, उनके अपने पाकिस्तान में भी बसे हुए हैं। जिनमें कुछ के बेटे-बहू, किसी का बेटा, किसी का भाई वहां है, तो किसी का मायका सरहद पार है। ऐसे में उनकी यह चिंता है कि वहां सब ठीक तो है।

इसी तरह पाकिस्तान में बसे इनके रिश्तेदारों को अलीगढ़ में रह रहे अपनों की चिंता सता रही है। इसी के चलते एक दूसरे से बातचीत कर जानकारी ली जा रही। इस विषय में अमर उजाला ने 26 अप्रैल को कई ऐसे परिवारों में संपर्क किया।

जिनके घरों में कोई महिला पाकिस्तानी है या किसी के रिश्तेदार पाकिस्तान में हैं। उनसे उनके रिश्तेदारों के विषय में जानने का प्रयास किया। मगर सभी के चेहरे पर दहशत के भाव तो थे।

सब इस घटनाक्रम से परेशान थे। वीजा नियमों पर आ रहे आदेश भी उन्हें परेशान कर रहे थे।

मगर कुछ भी बोलने पर सभी ने चुप्पी साध ली। भाई के करांची पहुंचने पर राहत की सांस आई इस विषय में 26 अप्रैल को तुर्कमान गेट निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक अब्दुल हफीज की पत्नी रजिया बेगम बताती हैं कि उनके ताऊ बंटवारे के समय करांची में बस गए थे। उन पर कोई संतान नहीं थी।

इस पर 1990 में उनके भाई सलीम खां को साथ ले गए थे। उसके बाद से सलीम वहीं हैं। वे 2016 में यहां घूमने आए थे। इसके बाद अब उनके नाती के अकीका में डेढ़ माह के वीजा पर अपनी पत्नी व बेटी संग आए थे।

5 मई को अकीका होना था। उससे पहले ही उन्हें जाना पड़ गया। आते समय उन्होंने पाकिस्तानी आठ लाख रुपये बदले थे।

जो खर्च कर गए। प्रशासनिक निर्देश पर वे यहां से कार से अटारी बॉर्डर तक भेजे गए। इसके बाद अटारी से ट्रेन से गए हैं।

शनिवार दोपहर में वे करांची पहुंचे हैं। उनसे सकुशल पहुंचने की बातचीत पर ही राहत की सांस आई है।

वे रोते हुए अपने भाई से बिछडऩे का दर्द बयां करती है। शहर के नई बस्ती इलाके में पाकिस्तान के बलूचिस्तान से आकर बसे रमेश लाल बताते हैं कि वे 2005 में परिवार के दस लोगों के साथ आए थे। मगर एक बेटा व बहू किसी वजह से नहीं आ पाए थे। उसके बाद हालात बदलते रहे।

बेटा बहू नहीं आ सके। उनके अब तक के सभी प्रयास विफल रहे हैं।

बस एक बार शार्ट टर्म वीजा पर घूम गए हैं। यहां उनके परिवार के आठ सदस्यों को नागरिकता मिल चुकी है, जबकि दो अभी वीजा पर ही हैं।

अब इस घटना के बाद बेटा बहू की चिंता सता रही है। उनसे हर पल जानकारी ली जा रही है।

वे वहां से भारत आने को प्रयासरत हैं। अगर किसी तरह आ जाते हैं तो राहत मिलेगी। 26 साल बाद भी वापस न आ सका सलमान शहर के जयगंज पठानान इलाके के सलमान का किस्सा जगजाहिर है।

उसकी मां सलमा 1994 में अपने दो बेटों को लेकर नूरी वीजा पर अपने मायके करांची गई थी। वहां तीन वर्षीय बेटा सलमान के बीमार होने पर उसे वहीं छोडऩा पड़ा। खुद दूसरे बेटे संग वापस आ गई। तब से न बेटा वापस आया।

न खुद जा सकीं। बेटे की वापसी के लिए हर दहलीज पर दस्तक के बाद भी राहत नहीं मिली। अब बूढ़ी हो चली मां व पिता बेटे को लेकर चिंतित रहते हैं। बेटा वहां अब अपनी मासी के पास रहता है।

महीने में बात होती है। बड़ा भाई दानिश बताता है कि भाई को लेकर पूरा परिवार परेशान तो रहता है। मगर कुछ कर नहीं सकते।

14 हिंदू पाकिस्तान से आकर यहां बसे हैं, जो एलटी वीजा पर हैं 41 मुस्लिम पाकिस्तानी महिला और 2 पुरुष यहां एलटी वीजा पर हैं 9 मुस्लिम पाकिस्तानी ऐसे हैं, जिनके जीआर में एलटी वीजा लंबित






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