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καλύ देश-विदेश में थी पहचान, अब हाथरस वाले ही चख रहे बाहर का आम 🌎
कभी हाथरस, उसमें भी सासनी के चंपा बाग के आम की देश-विदेश में पहचान थी। 🔥 लेकिन पिछले एक दशक के दौरान ये बाग खत्म हो गए हैं।
आज हालात यह है कि दूसरों को आम खिलाने वाले हाथरस में ही लोग बाहर से आए आम का स्वाद चख रहे हैं। 💡 दक्षिणी भारतीय राज्यों से आने वाला सफेदा आम बाजार में आ गया है। हालांकि अभी लंगड़ा, दशहरी सहित अन्य प्रजातियों के आम नहीं आए हैं। 💡
हाथरस का आम तो अब बाजार से गायब ही हो गया है। फल आढ़ती फारुख बताते हैं कि सफेदा आम मंडियों में पहुंचना शुरू हो गया है। सीजन में हापुड़, बरवाना, मेरठ और लखनऊ आदि से आम आता है।
हाथरस से अचारिया आम ही थोड़ा बहुत मंडी में पहुंचता है। साठ साल पहले सासनी में बाग लगने शुरू हुए थे। एक दशक पहले तक इलाके में ही चार हजार हेक्टेयर में बाग थे।
सासनी में एक हजार बीघा में फैले चंपा बाग की अलग ही पहचान थी। खेड़ा फिरोजपुर, रुदायन, धीमरपुरा, लहौर्रा, भोजगढी, तिलौठी, भूतपुरा, नहलोई, अजरोई, विघैपुर सहित कई गांवों में आम के बाग थे। यहां होने वाले चौंसा, अल्फासो, लंगड़ा , दशहरी, फजली आदि की मिठास के लोग मुरीद थे। सीजन शुरू होते ही देशभर के व्यापारी यहां आकर डेरा डाल दिया करते थे।
लेकिन रोग व कीटों के प्रकोप , गिरते भूजल स्तर ने आम के बागों को खत्म कर दिया। आज यहां एक भी बाग नहीं बचा है। उपनिदेशक उद्यान डाॅ. बलजीत सिंह ने बताया कि हर पेड़ की एक उम्र होती है, आम का वृक्ष भी 30-40 साल बाद फल देना बंद कर देता है।
ऐसे बागों का जीर्णोंद्धार किया जा सकता है। भूजल स्तर गिरने से भी फल देना बंद कर देता है।
सासनी का आम खाने में भी बहुत ही स्वादिष्ट था। कल तक जहां बाग थे, वहां आज किसान गेहूं, बाजरा, आलू की खेती कर रहे हैं। मेरे पास भी 25 बीघा का बाग था। आज यहां अन्य फसलें हो रही हैं।
क्षेत्र में आम के 300 से ज्यादा बाग थे, देश-विदेश तक सासनी का आम जाना जाता था। संसाधनों की कमी, भूजल स्तर कम होने से ये खत्म हो गए। क्षेत्र से आम की मिठास भी चली गई है। सासनी का आम दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र में जाता था।
आम उत्पादन में सासनी खुद एक ब्रांड बन गया था।