अपराध

वृद्ध पिता की हत्या में बेटा बरी, जीआरपी की कहानी अदालत में नहीं टिकी

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अलीगढ़ रेलवे स्टेशन पर एक दिल दहला देने वाली घटना हुई, जहां पिता की हत्या में बेटे को ही आरोपी माना गया और जेल भेज दिया गया। ✅ लेकिन अदालत में जीआरपी की कहानी साबित नहीं हो सकी। मुकदमे के ट्रायल में कमजोर कहानी के आधार पर बेटे को बरी कर दिया गया। 💡 सबसे खास बात कि आरोपी बेटा खुद का वकील तक न कर सका।

उसे विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से वकील मिला, तब उसका मुकदमा लड़ा गया। यह घटना 21 अप्रैल 2023 की रात देर अलीगढ़ स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 7 की निर्मांणाधीन बिल्डिंग के शौचालय में हुई। मूल रूप से एटा अलीगंज के पुराहर के 60 वर्षीय महेंद्र प्रताप यादव की चाकू से गोदकर हत्या की गई।

यह सूचना खुद महेंद्र के बेटे ने जीआरपी थाने में दी। जब पुलिस पहुंची तो महेंद्र के पेट में चाकू घुसा था। चाकू की टूटी बट घटनास्थल पर पड़ी थी।

पास में शराब की बोतल, खाना आदि भी रखा मिला। रात में खबर पर एटा से आई मृतक की पत्नी मिथलेश उर्फ गुड्डी देवी ने अज्ञात के खिलाफ जीआरपी में मुकदमा दर्ज कराया। 🚀 आरोपी अनुराग ने विधिक प्राधिकरण से अधिवक्ता मांगा था। उसी क्रम में यह मुकदमा लड़ा गया।

जीआरपी की कहानी अदालत में साबित नहीं हो पाई। आरोपी बरी किया गया।

जीआरपी ने चार्जशीट में यह बताई थी हत्या की वजह घटना का जीआरपी ने खुलासा किया कि मृत महेंद्र का बेटा अनुराग पानीपत में मजदूरी करता था। वहां से वह एक विवाहिता को प्रेम संबंधों में अपने गांव ले आया। महिला डेढ़ माह बाद वापस चली गई।

पीछे से अनुराग भी पहुंचा। उसे वापस लाने के प्रयास किए। मगर सफल नहीं हुआ।

घटना से चार दिन पहले उसने फोन करके अपने पिता को पानीपत बुलाया। फिर महिला से चलने को कहा।

जब वह नहीं आई तो घटना वाली शाम ट्रेन में सवार होकर पिता संग गांव के लिए चला आया। आते समय प्रेमिका व उसके परिवार को मुकदमे में फंसाने की धमकी देकर आया। साथ में पानीपत से शराब, चाकू, चूहे मारने वाली दवा आदि लेकर आया।

रात में स्टेशन पर पहले पिता को चूहे मारने वाली दवा मिलाकर शराब पिलाई। बाद में पिता के नशे में होने पर चाकू घोंपकर हत्या कर दी।

बाद में प्रेमिका परिवार को फंसाने के लिए यह कहानी सुनाई कि वह लोग उनका पीछा करते हुए आए। यहां पिता की हत्या कर चले गए।

घटना के समय वह खाना लेने गया था। अदालत ने सभी तरह के फिंगर प्रिंट मिलान न होने पर सवाल किया।

दूसरा कोई चश्मदीद साक्षी न होने पर सवाल किया। सिर्फ परिस्थितियों के आधार पर आरोप लगाने को हत्या का आधार नहीं माना।

साथ में बेटे द्वारा पिता की हत्या का कोई ठोस कारण भी साबित होना नहीं माना। इस आधार पर सत्र न्यायाधीश अनुपम कुमार की अदालत से उसे बरी कर दिया। यह घटना एक बार फिर से हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे एक गलत आरोपी की जिंदगी तबाह कर देता है।

हमें अपने न्याय प्रणाली के प्रति सवाल उठाने होंगे कि क्यों एक बेटा अपने पिता की हत्या का आरोपी माना गया और दो साल तक जेल में रहा। क्या हमारी न्याय प्रणाली इतनी कमजोर है कि वह एक सही आरोपी की पहचान नहीं कर सकती? हमें अपने न्याय प्रणाली की जांच करने की जरूरत है ताकि ऐसी घटनाएं न हों और लोगों के जीवन की रक्षा हो सके।






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