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मजदूरों का विश्वास टूटा! पंजीकरण से मुंह मोड़ रहे 38 हजार मजदूर

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एक मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाएगा। लेकिन इस साल के मौके पर मजदूरों का रुझान पंजीकरण से लगातार घट रहा है। 🌟 सरकारी तंत्र मजदूर हितैषी योजनाओं का ढिंढोरा पीटेगा, लेकिन असल में मजदूरों को इनका लाभ नहीं मिल रहा। यही कारण जिले में पंजीकृत 98 हजार में से 38 हजार ने श्रम विभाग में अपने पंजीकरण का नवीनीकरण नहीं कराया है। 💡

जिले में भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में करीब 98 हजार निर्माण श्रमिक पंजीकृत हैं। इनमें राज मिस्त्री और मजदूरों के अलावा बिजली फिटिंग, लकड़ी का कार्य करने वाले और ईंट भट्ठों पर काम करने वाले भी शामिल हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए शुरुआती दौर में इन मजदूरों ने बड़े उत्साह से पंजीकरण कराए थे, लेकिन योजनाओं का लाभ न मिलने से इनका मोह इससे भंग हो रहा है। ✅ अब नए पंजीकरण तो दूर, पुराने पंजीकृत मजदूर भी अपना नवीनीकरण कराने में रुचि नहीं ले रहे हैं।

इसका मुख्य कारण बोर्ड की ओर से वर्तमान में कुछ चुनिंदा योजना ही लागू किया जाना है, जबकि शुरुआती दौर में करीब 21 योजनाओं का लाभ उनको दिया जाता था। यह स्थिति बोर्ड के लिए चिंताजनक है, क्योंकि मजदूरों के पंजीकरण से ही इन योजनाओं का लाभ मिलता है। लेकिन जब मजदूर ही पंजीकरण से मुंह मोड़ रहे हैं, तो इन योजनाओं का क्या लाभ मिलेगा? पंजीकरण की स्थिति पर एक नजर 200 करीब पंजीकृत फैक्टरियां हैं जिले में संचालित।

50 से अधिक श्रमिकों वाली लगभग 50 फैक्टरियों का होता है संचालन। 400 से अधिक गैर पंजीकृत फैक्टरियों के संचालन का है अनुमान। 05 हजार से भी कम फैक्टरी श्रमिकों का कटता है फंड।

30 हजार से अधिक श्रमिक करते हैं दैनिक मजदूरी पर काम। निर्माण मजदूरों को लगातार चौपाल व शिविर लगाकर पंजीयन के लिए जागरूक किया जा रहा है। पुराने पंजीयन के नवीनीकरण के लिए भी उन्हें जागरूक किया जाता है। कोशिश की जा रही है कि अधिक से अधिक पंजीयन को सक्रिय किया जा सके।

यह है विडंबना की बात कि मजदूर दिवस के मौके पर मजदूरों का पंजीकरण घट रहा है। सरकार के लिए चुनौती है कि इन मजदूरों का विश्वास कैसे बहाल किया जाए।

क्या सरकारी योजनाओं का लाभ दिखाने से मजदूर अपना पंजीकरण कराना शुरू करेंगे? या फिर सरकार को मजदूरों की मांगों को पूरा करना होगा? समय ही बताएगा कि सरकार और मजदूरों के बीच में क्या समाधान निकलता है और मजदूर अपना विश्वास कब दोबारा बहाल करते हैं।






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