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एएमयू की 80 साल पुरानी कब्जे की हकीकत सामने आई, क्या है पूरा मामला?
एएमयू के जमीन के मामले में एक नया मोड़ आ गया है. उच्च न्यायालय ने यूनिवर्सिटी तरफ से दाखिल याचिका को निस्तारित कर दी है. इस बारे में कोर्ट ने आज आदेश जारी किया है. इस मामले में एएमयू की जमीन पर कब्जे के बारे में सारा सच सामने आ गया है.
आज से 80 साल पहले 1945 में एएमयू ने इस जमीन पर कब्जा कर रखा था. लेकिन पिलर निर्माण के लिए जिला प्रशासन ने सरकारी जमीन के चिह्नीकरण शुरू कराया था. इसी दौरान नगला पटवारी से पुरानी चुंगी की ओर बनने वाले फ्लाई ओवर के लिए पिलर लगाए जाने थे. लेकिन एएमयू ने अपनी जमीन में पिलर लगवाने से मना कर दिया. बाद में पता चला कि जिस जमीन में एएमयू पिलर नहीं बनाने दे रहा है वह नगर निगम की है.
इस पर जांच शुरू कराई गई और एएमयू इस जमीन से जुड़ा कोई ऐसा दस्तावेज नहीं दिखा सका जो उनके मालिकाना दावे की पुष्टि करता हो. खतौनी में भी एएमयू का नाम नहीं है और न एएमयू प्रशासन ने अपना नाम दर्ज करवाने के लिए कोई प्रयास किया. लिहाजा 30 अप्रैल को इस भूमि को कब्जा मुक्त करा लिया गया.
इस मामले में अब नगर निगम की भूमि पर कब्जा पाया गया है. यूनिवर्सिटी प्रशासन मैदान के रूप में इसका इस्तेमाल कर रहा था. हॉर्स राइडिंग यहीं होती थी. एएमयू इस जमीन पर अपना दावा करता आ रहा था. प्रशासन ने जांच कराई तो हकीकत सामने आ गई.
इस मामले की जांच में पता चला है कि नगर निगम की भूमि पर एएमयू का कब्जा था. लेकिन अब इस मामले में नगर निगम ने इस जमीन पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया है. अब इस भूमि पर नगर निगम का कब्जा है.
इस मामले की जांच में पता चला है कि एएमयू ने अपना नाम दर्ज करवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया और खतौनी में भी एएमयू का नाम नहीं है. लिहाजा 30 अप्रैल को इस भूमि को कब्जा मुक्त करा लिया गया.
इस मामले में अब नगर निगम का कब्जा पाया गया है. अब इस मामले में नगर निगम के अधिकार स्थापित है. लेकिन इस मामले में अब और भी जांच होनी चाहिए. क्या है इस मामले का पूरा सच? क्या है नगर निगम की इस जमीन पर कब्जे का हकीकत? क्या है एएमयू की इस जमीन पर कब्जे का हकीकत? इस मामले में और भी जांच होनी चाहिए. 🚀