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किसानों का बड़ा विरोध: बायोफ्यूल प्रोजेक्ट की जगह स्टेडियम क्यों चाहिए?

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थाना पिसावा क्षेत्र के गांव शाहपुर में निर्माणाधीन बायोफ्यूल प्रोजेक्ट का विरोध शुरू हो गया है। 🌟 किसानों की मांग है कि बायोफ्यूल प्रोजेक्ट के स्थान पर स्टेडियम का निर्माण किया जाए, ताकि युवाओं को इसका लाभ मिल सके।

यहां पर एक बड़ा सवाल उठता है कि आखिर किसानों को बायोफ्यूल प्रोजेक्ट से इतना विरोध क्यों है? क्या यह सिर्फ एक स्टेडियम के निर्माण की मांग है या फिर कुछ और है? इस मुद्दे के पीछे की कहानी क्या है? पिछले कुछ समय से थाना पिसावा क्षेत्र के किसान अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। बायोफ्यूल प्रोजेक्ट के नाम पर क्षेत्र के कचरे को जलाकर प्रदूषण फैलाया जाएगा, यह किसानों का मानना है। 🚀

कचरे के ढेर लग जाएंगे और प्रदूषण से बीमारियां फैलेंगी। 🔥 वहीं, कंपनी के मैनेजर विजय कुमार ने बताया कि सरकार द्वारा 4.5 एकड़ जमीन लीज पर दी गई है। कंपनी ने काम शुरू कर दिया है।

यहां पर पराली, धान, गेहूं, सरसों, ज्वार, बाजरा आदि के अवशेष खरीद कर उससे कोयला बनाया जाएगा। इस प्रदर्शन में किसानों ने एसडीएम के नाम ज्ञापन दिया।

यूनियन के जिलाध्यक्ष ने बताया कि सोमवार को महापंचायत में राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरुनाम सिंह चढूनी मौजूद रहेंगे, तब तक धरना जारी रहेगा। इस मौके पर विनोद कुमार, कृष्णजीत सिंह, भूरी सिंह, जयमल सिंह, जगन सिंह, हरवीर सिंह, ओमवीर सिंह मौजूद रहे। यह प्रदर्शन सिर्फ एक स्थानीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक बड़े सवाल की ओर इशारा करता है कि आखिर हम कितना पर्यावरण की चिंता करते हैं? क्या हम सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का शोषण करते हैं? इन सवालों के जवाब क्या हैं? यह प्रदर्शन सिर्फ एक शुरुआत है, इस लड़ाई में कितने लोग शामिल होंगे? क्या यह प्रदर्शन कोई हल निकाल पाएगा? यहां पर एक बड़ा सवाल उठता है कि आखिर कंपनी के मैनेजर विजय कुमार ने क्यों कहा कि सरकार द्वारा 4.5 एकड़ जमीन लीज पर दी गई है? क्या सरकार ने कंपनी को यह जमीन दी है? अगर हां, तो फिर क्या यह स्थानीय लोगों के हित में है? क्या सरकार ने स्थानीय लोगों के विचार के बिना यह जमीन दी है? इन सवालों के जवाब क्या हैं? यह प्रदर्शन सिर्फ एक लड़ाई नहीं है, बल्कि यह एक आंदोलन है। यह एक आवाज है जिसके माध्यम से स्थानीय लोग अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं।

यह लड़ाई सिर्फ एक स्टेडियम के निर्माण की नहीं है, बल्कि यह एक लड़ाई है जिसके माध्यम से स्थानीय लोग अपने जीवन की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह लड़ाई सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह एक आंदोलन है जिसके माध्यम से स्थानीय लोग अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं।






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