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जीवांश कार्बन और पोटाश में तेजी से हो रहा है कम! क्या है इसका असर?

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तहसील अतरौली क्षेत्र में खेतियोग्य जमीन में जीवांश कार्बन और पोटाश कम हो रहा है। 💡 तहसील से प्रयोगशाला भेजे गए करीब 4400 मिट्टी के नमूनों की जांच में इसका खुलासा हुआ है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अंधाधुंध डीएपी का प्रयोग खेतों की उर्वरा शक्ति कमजोर कर रहा है। 🚀 किसानों को डीएपी के साथ दूसरे विकल्पों पर विचार करना चाहिए। जीवांश कार्बन मृदा कार्बनिक कार्बन (साइल आर्गेनिक कार्बन-एसओसी) के रूप में भी जाना जाता है। ✨

यह मृत पौद्यों और जानवरों के अपशिष्ट से बनता है। इससे ही मिट्टी की उर्वरता, जल धारण क्षमता और संरचना बेहतर होती है।

डीएपी हमारी मिट्टी को ठोस बना देती है, फिर हमें क्यों डीएपी पर इतना जोर दे रहे हैं? एडीओ नेत्रपाल सिंह ने बताया कि किसान डीएपी का प्रयोग खेतों में छिड़काव विधि से करते हैं। पौदा अपने पास पहुंची डीएपी को ही ग्रहण करता है। इस तरह करीब 70 प्रतिशत डीएपी खेत में ही बेकार पड़ी रहती है। लेकिन अब किसानों के लिए एक और विकल्प है, जिसके तहत वे पीएसवी कल्चर 10 किलो बीज में मिलाकर खेतों में डालना चाहिए।

यह डीएपी को घुलनशील स्थिति में लाती है। पीएसवी कल्चर ब्लॉक पर मौजूद है। इसके अलावा अन्य कई विकल्प हैं, जिन्हें किसान ब्लॉक से प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा किसान फसल चक्र भी बदलें।

साल में एक बार दलहन अवश्य पैदा करें। दलहनी फसल के पत्ते खेतों में गिरकर जरूरी बैक्टीरिया को सक्रिय करते हैं। खेतों में साल में एक बार हरी खाद अवश्य बनानी चाहिए। यह उर्वरा शक्ति बढ़ाती है।

किसान गोबर और कूड़ा करकट एकत्र कर खाद (घूरा) तैयार करते हैं। इसको हमेशा गड्ढा खोदकर तैयार करें।

समय-समय पर थोड़ा यूरिया भी घूरे पर डालते रहें, यह अवशेषों को जल्द गलाने का काम करता है। मवेशियों का मूत्र और अन्य अवशेष भी घूरे पर डालें।

यह बैक्टीरिया को सक्रिय करता है। प्रयोगशाला में उपकरण खा रहे धूल उप निदेशक कृषि कार्यालय अतरौली में मिट्टी की जांच के लिए उपकरण मौजूद हैं। पहले यहां मिट्टी की जांच होती थी, लेकिन वर्तमान में अलीगढ़ में ही मिट्टी की जांच होती है। किसान गिरीश चौधरी, रामभान सिंह, शिवकुमार शर्मा, उदयपाल राघव आदि ने मांग की है कि अतरौली में ही मिट्टी की जांच होनी चाहिए।






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