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डॉक्टर नहीं लिख रहे दवाएं...हाथरस में दम तोड़ रहे जन औषधि केंद्र, नौ हुए बंद 💊🏥
मरीजों को सस्ती दवाएं मिल सकें इसके लिए जनऔषधि केंद्र खोले गए थे। 🔥 हाथरस में 16 केंद्र थे जिनमें से नौ केंद्र एक साल के भीतर बंद हो गए हैं। पांच केंद्र ऐसे हैं जो खर्च तक नहीं निकाल पा रहे हैं। 🚀 केंद्र संचालकों का कहना है कि शुरूआत में तो चिकित्सक खूब दवाएं लिखते थे लेकिन अब जेनरिक दवाएं बहुत कम लिखी जा रही हैं।
प्राइवेट डॉक्टर तो लिखते ही नहीं सरकारी अस्पताल के पर्चे पर भी यह सस्ती दवा अपनी जगह नहीं बना पा रही है। प्रधानमंत्री जन औषधि योजना की शुरुआत वर्ष 2016 में हुई थी। 🚀
इसका लक्ष्य लोगों को सस्ती दर पर गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध कराना था। जानकारों का कहना है कि इन जेनरिक दवाओं का असर ब्रांडेड दवाओं के बराबर ही होता है। जिले में कुल 16 प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोले गए थे।
लेकिन अब लगातार बंद हो रहे हैं। क्योंकि अधिकांश किराये की दुकान में खोले गए। किसी का किराया पांच हजार महीना था तो किसी का 7000 है। लेकिन अब तो पूरे महीने में इतने की दवाएं तक नहीं बिक रही हैं।
केंद्र संचालकों का कहना है कि एक मुश्किल यह भी है कि दवाएं खत्म होने पर बार-बार मांगने पर भी परियोजना से इनकी आपूर्ति समय से नहीं हो पाती। इस कारण कई बार ग्राहकों को मायूस लौटना पड़ता है। दुकान पर अधिक बिक्री नहीं होती।
समय से दवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। इसके साथ ही क्षेत्र में अधिकांश प्रशिक्षित डॉक्टर हैं, जो अन्य मेडिकल स्टोर की दवाएं लिखते हैं।
मेडिकल स्टोर वाले उन्हें उनकी लिखी दवा बिकने पर कमीशन भी देते हैं।- चिकित्सक जेनरिक दवाएं नहीं लिखते हैं। काफी कम मरीज ही ऐसे होते हैं, जो हमारे पास जेनरिक दवाएं खरीदने आते हैं। दिन में करीब 400 रुपये की ही बचत हो पाती है।
जब तक डाॅक्टर सहयोग नहीं करेंगे, तब तक इन दवाओं की मांग नहीं बढ़ेगी। प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना के तहत जिले में 16 केंद्र खोले गए थे। इनमें से छह दुकानों के संचालकों ने लाइसेंस सरेंडर कर दिए हैं। जिले में अभी और जन औषधि केंद्र खोले जाएंगे।
रोजाना 400 रुपये की भी नहीं हो पाती बचत जिले के चिकित्सक जेनरिक दवाएं नहीं लिखते हैं। लोगों के मन में भी यह भ्रम है कि यह दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तुलना में कम काम करती हैं। इससे जन औषधि केंद्रों पर दवाओं की बिक्री कम हो पाती है। केंद्र संचालकों का कहना है कि उन्हें एक दिन में 400 रुपये की ही बचत मुश्किल से हो पाती है।
इससे दुकान का खर्चा भी नहीं निकल पाता। जिले में चिकित्सक मरीजों को जेनरिक दवाएं नहीं लिखते हैं, इसलिए अधिकांश जन औषधि केंद्रों पर दवाओं का स्टॉक सीमित ही होता है। काफी दवाएं मरीजों को इन केंद्रों पर उपलब्ध नहीं हो पाती हैं, जिससे यह मरीज निराश होकर लौट जाते हैं।